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प्रेस विज्ञप्ति 23 जनवरी, 2009
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लापता होने के पीछे ब्रिटिश-अमरीकी गुप्तचर ऐजेंसियों के साथ-साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू की लिप्तता की जांच नवगठित नेशनल इन्वेस्टीगेशन ऐजेंसी से करवाई जाये।


जयपुर- नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लापता होने के रहस्य से तत्काल पर्दा उठाया जाना अब देशहित में आवश्यक है। राजस्थान स्टेट फारवर्ड ब्लाक के जनरल सेक्रेटरी हीराचंद जैन ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 113 वें जन्म दिवस पर पार्टी मुख्यालय पर आयोजित देशप्रेम दिवस कार्यक्रम में पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुये स्पष्ट आरोप लगाया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय ढंग से लापता होने के पीछे ब्रिटिश व अमरीकी गुप्तचर ऐजेंसियों के साथ-साथ भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू की लिप्तता अब जागजाहिर होती जा रही है। अत: इस मामले की जांच नवगठित नेशनल इन्वेस्टीगेशन ऐजेंसी से करवाई जाये। उन्होंने आगे बताया कि आल इण्डिया फारवर्ड ब्लाक के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव एवं वरिष्ठ सांसद चित्ता वासू ने 25 नवम्बर, 1992 को संसद के दोनों सदनों, राज्यसभा एवं लोकसभा के सदस्यों (सांसदों) को, एक अपील जारी कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय ढंग से लापता होने के प्रकरण की जांच की मांग की थी। इस अपील के साथ विस्तृत तथ्यात्मक प्रतिवेदन भी सलग्न किया गया था। इस तथ्यात्मक प्रतिवेदन में उन्होंने पंजाब हाईकोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश जस्टिस जी. टी. खोसला की अध्यक्षता में गठित जस्टिस खोसला कमीशन द्वारा 30 जून, 1974 को प्रस्तुत रिपोर्ट की फाइण्डिंग्स के साथ-साथ अन्य कई साक्ष्य प्रस्तुत किये थे।
एक सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य में आईएनए डिफेंस कमेटी में वर्ष 1945-46 में कार्यरत कान्फीडेंशिल स्टेनों श्री श्यामलाल जैन ने गवाही दी थी कि स्वर्गीय श्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें नवम्बर 1945 में एक पत्र टाईपराइटर पर ही डिक्टेट कर टाईप करवाया था। यह पत्र ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली को लिखवाया था। जिसमें लिखा था कि "आपके युद्ध अपराधी सुभाष चंद्र बोस को स्टालिन ने रूसी सीमा क्षेत्र में प्रवेश की इजाजत दे दी है। यह स्पष्ट रूप से Treachery and betrayal of faith by Russians है। क्योंकि रूस अमरिका और ब्रिटेन का सहयोगी है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये था। कृपया आप इसको नोट करें और जैसा उचित समझें आगे कार्यवाही करें।" ब्रिटिश गुप्तचर ऐजेंसियों ने भी इस ही दौरान अपनी सरकार को गोपनीय सूचना दी थी कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को एक "सीक्रेट संदेश" नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिला है। यह रिपोर्ट पंडित नेहरू द्वारा बिzटिश प्रधानमंत्री एटली को लिखे गये पत्र से मेल खाती है, वहीं खोसला कमीशन में श्री श्यामलाल जैन द्वारा दी गई गवाही का आज तक सरकारी, गैर सरकारी, कांग्रेस पार्टी, ब्रिटिश व अमरीकी सरकारों ने, जस्टिस खोसला कमीशन-1970 या जस्टिस एम. के. मुकर्जी कमीशन-1999 के सामने या सार्वजनिक रूप से खण्डन नहीं किया है और न ही चुनौती दी है। यही नहीं इस रहस्यमय प्रकरण को दबाने के लिये आयोगों को वांच्छित दस्तावेज भी सरकार ने जानबूझ कर उपलब्ध नहीं करवाये। अत: यह स्पष्ट है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्राप्त "गुप्त संदेश" के बाद स्वर्गीय पंडित नेहरू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली को पत्र लिखा। अत: अब स्पष्ट हो गया है कि स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू की नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय लापता होने के प्रकरण में लिप्तता रही है। एटली को लिखे अपने पत्र में नेताजी को "युद्ध अपराधी" आरोपित करने से भी पंडित नेहरू शक के दायरे में आते हैं। वहीं जस्टिस एम. के. मुकर्जी आयोग-1999 ने भी अपनी रिपोर्ट में साफ माना है कि 18 अगस्त, 1945 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हवाई दुर्घटना में मौत नहीं हुई है तथा जापानी रिंकोजी मंदिर में जो अस्थियां है वे नेताजी की नहीं हैं। ऐसी स्थिति में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय ढंग से लापता होने का सीधा-सीधा तात्पर्य है कि नेताजी द्वितिय विश्वयुद्ध के मित्र राष्ट्रों अमरीका-ब्रिटेन के चंगुल में फंस गये और उन्हें युद्ध बन्दियों के शिविर में रखा गया होगा। जहां दी गई यातनाओं से उनकी मौत होना सम्भव है और इसकी जानकारी स्वर्गीय पंडित नेहरू को होने की पूरी सम्भावना है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को क्या युद्धबंदी शिविर में यातना देकर मारा गया और इसके लिये पंडित जवाहर लाल नेहरू सहित कौन-कौन दोषी हो सकते हैं। इसकी जांच होना अब गम्भीर महत्वपूर्ण एवं सर्वोच्च प्राथमिकता का मुद्दा है।
राजस्थान स्टेट फारवर्ड ब्लाक के जनरल सेक्रेटरी हीराचंद जैन ने केन्द्र सरकार को चुनौती दी है कि अगर वे आतंकवाद से लडने की नैतिक प्रतिबद्धता से बंधे हैं तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय लापता होने एवं उनकी ब्रिटिश-अमरीकी यातना शिविर में सम्भावित हत्या की जांच नवगठित नेशनल इन्वेस्टीगेशन ऐजेंसी से करवायें।
उन्होंने आगे कहा कि केन्द्र की सत्तारूढ सरकारें 14-15 अगस्त,1947 को ब्रिटिश अम्पायर और भारतीय नेताओं के बीच हुये "ट्रांसफर आफ पावर" समझौते के दस्तावेज भी जानबूझ कर सार्वजनिक नहीं कर रही है और न ही मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के महत्वपूर्ण दस्तावेजों को जगजाहिर किया जा रहा है। यही नहीं अमरीका व ब्रिटेन के दबाव में आकर आईएनए व इण्डियन नेशनल गवर्नमेंट से सम्बन्धित दस्तावेजों को भी सरकार जग जाहिर नहीं कर रही है। इससे भी नेताजी की हत्या की साजिश की आशंका स्पष्ट हो जाती है।
उन्होंने आगे बताया कि फारवर्ड ब्लाक आगमी 26 जनवरी, 2009 से इस प्रकरण में जनजागरण अभियान चलायेगा, जिसके तहत घर-घर जाकर नेताजी के रहस्यमयढंग से लापता होने के मुद्दे की जांच नेशनल इन्वेस्टीगेशन ऐजेंसी से करवाने के लिये जनमत तैयार करेगा।
सभा को टीयूसीसी, अग्रगामी किसान सभा, यूथ लीग के वरिष्ठ कामरेडों ने भी सम्बोधित किया।
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