RAJASTHAN STATE FORWARD BLOC
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4658, BURAD HOUSE,

BERI-KA-BAS,

KGB-KA-RASTA,

JOHARI BAZAR,

JAIPUR-302003





09001060013
वामपंथियों को उनके गढ में शिकस्त की स्थिति !
फारवर्ड ब्लाक को अस्तित्व के लिये संघर्ष हेतु तैयार हो जाना चाहिये !


आगामी लोकसभा चुनावों में क्या वामपंथी-जनवादी ताकतों को उनके गढ में ही शिकस्त मिलने की स्थिति बन रही है ? अगर विभिन्न संगठनों के चुनावी आंकलनों पर गौर किया जाये तो फौरी तौर पर लगता है कि अकेले वामदलों-सीपीआई और सीपीआईएम के वोट बैंक में आगामी लोकसभा चुनावों में, केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में ही 7 से 10 प्रतिशत की कमी होने जा रही है। नतीजन इन तीन राज्यों में इन दोनों वामपंथी पार्टियों को उनकी मौजूदा सीटों में से 10 प्रतिशत तक सीटें गंवानी पड सकती है। सीपीआईएम को सब से ज्यादा नुकसान केरल में उठाना पडेगा। उसे कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस गठबन्धन के कारण पश्चिम बंगाल में भी अच्छा खासा नुकसान होगा। वामपंथियों को केरल, त्रिपुरा में होने वाले नुकसान से सीधा-सीधा फायदा कांग्रेस को होगा। लेकिन पश्चिम बंगाल में होने वाले नुकसान का ज्यादा फायदा तृणमूल कांग्रेस को होने वाला है, जो कि वामपंथियों के लिये गम्भीर चिन्ता और चुनौती का विषय है। देश के बाकी अन्य राज्यों में वामपंथी पार्टियों की स्थिति नगण्य के बराबर है और इस भारी नुकसान की भरपाई वहां से नहीं हो सकती है। अलबत्ता वोट प्रतिशत में कुछ प्रतिशत इजाफे की गुंजाइश जरूर बनती है। इस परिस्थिति और पश्चिम बंगाल में आने वाले विधानसभा चुनावों पर इसके दुषप्रभाव से चिन्तित वामपंथी पार्टियों ने अपनी स्थिति सुधारने के लिये आंध्र, उडीसा, तमिलनाडू, बिहार, राजस्थान सहित अन्य राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टियों से स्थानीय स्तर पर चुनावी तालमेल की मुहिम छेड रखी है।
वामपंथी पार्टियों की इस विषम परिस्थिति का गम्भीर असर इन पार्टियों के साथ केरल, त्रिपुरा एवं पश्चिम में वाम-जनवादी गठबन्धन (एलडीफ) में शामिल फारवर्ड ब्लाक व आरएसपी पर भी पडेगा। आरएसपी ने पिछले सालों अपनी राजनैतिक एवं संगठनात्मक स्थिति को सुधारा है या यथास्थिति में रखने में सफल रही है। फिर भी पश्चिम बंगाल में उसे लोकसभा चुनावों के साथ-साथ आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर तृणमूल कांग्रेस एवं अन्य वामपंथी नक्सलवादी गुटों से टक्कर लेने के लिये संघर्ष करना होगा। जहां तक विभिन्न आंकलनों का सवाल है आरएसपी अपने वोट बैंक को यथावत रखने में सफल होती नजर आ रही है। जहां तक फारवर्ड ब्लाक का सवाल है, लोकसभा में उसके मात्र तीन सांसद हैं और पश्चिम बंगाल में एक विधानसभा डिप्टी स्पीकर एवं दो मंत्रियों सहित 23 विधायक हैं। वोट प्रतिशत भी किनारे पर है और केरल, त्रिपुरा सहित पूरे देश में संगठनात्मक ढांचा चरमराया हुआ है या यों कहें कि ना के बराबर है। विभिन्न चुनावी आंकलनों के अनुसार पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादियों के बाद फारवर्ड ब्लाक ही एक ऐसा दल है जिसे कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं। लोकसभा सीटों के नये सीमांकन के बाद कूचबिहार व पुरूलिया लोकसभा सीटों पर विपक्षी दलों का प्रभाव बढा है। वहीं भारतीय जनता पार्टी अपना प्रभाव जमाने एवं वोट बैंक में इजाफा करने के लिये भितरघात कर सकती है। फारवर्ड ब्लाक की पश्चिम बंगाल के बाद देश के अन्य किसी प्रान्त में संगठनात्मक स्थिति लगभग शून्य के बराबर होने के कारण वामपंथी-जनवादी गठबन्धन में भी उसकी दयनीय स्थिति है। केरल, त्रिपुरा व पश्चिम बंगाल को छोड दें तो पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, उडीसा, हरियाणा एवं दिल्ली में पार्टी का संगठन नाम मात्र का है। मध्यप्रदेश विधान सभा चुनावों के बाद मध्यप्रदेश में संगठन छिन्नभिन्न हो चुका है। छत्तीसगढ में संगठन है ही नहीं। मणिपुर, जम्मू काश्मीर, आंध्र व तमिलनाडू में संगठन अभी नया है। हिमाचल प्रदेश व अधिकांश उत्तर पूर्व राज्यों में भी पार्टी संगठन नहीं है। राजस्थान, महाराष्ट्र सहित कुछ राज्यों में पार्टी संगठन अपने बूते पर सक्षमता से गतिशील हुआ भी है तो केन्द्रीय नेतृत्व उसे उखाडने पर तुला है। फारवर्ड ब्लाक की उसके गढ पश्चिम बंगाल, केरल व त्रिपुरा में हालत ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा की जा रही उठापटक पार्टी संगठन के लिये खतरनाक हो सकती है। गठबन्धन के वामपंथी दल भी फारवर्ड ब्लाक को अपने आगे दोयम दर्जे की पार्टी मानते है और कोई तवज्जो नहीं देते हैं। बाकी पूरे देश में पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के गैर जुम्मेदारान रवैये के कारण भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित 70 साल से भी ज्यादा पुरानी इस पार्टी के अस्तित्व को गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। आज पार्टी नेतृत्व में राष्ट्रीय छवि वाला कोई नेता भी नहीं बचा है। जो वरिष्ठ नेता हैं उन्हें किनारे कर दिया गया है। पिछले जम्मू काश्मीर, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, दिल्ली व मेद्यालय के विधानसभा चुनावों में पार्टी की दयनीय स्थिति ने केन्द्रीय नेतृत्व की कार्यशैली की कलई खोल कर रख दी है। लेकिन पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने इस पर मंथन नहीं किया नतीजन आगामी लोकसभा चुनावों और उडीसा व आंध्र विधान सभा चुनावों में पार्टी को खामियाजा भुगतना होगा।
कुलमिला कर विभिन्न चुनावी सर्वे और आंकलनों से स्पष्ट है कि पार्टी को सीटें बचाने और वोट प्रतिशत कायम रखने के लिये गम्भीर संघर्ष करना होगा और पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा में अपने विरोधियों से निपटने के लिये राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अपने संगठन को ज्यादा ताकतवर बनाकर विरोधियों को टक्कर देनी होगी।
हीराचंद जैन, जनरल सेक्रेटरी, राजस्थान स्टेट फारवर्ड ब्लाक
23 फरवरी, 2009
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