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4658, BURAD HOUSE,

BERI-KA-BAS,

KGB-KA-RASTA,

JOHARI BAZAR,

JAIPUR-302003





09001060013
अब गुर्जर आरक्षण आन्दोलन की सच्चाई भी जान लें !
गुर्जर आरक्षण मसले का संवैधानिक समाधान
संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार किसी वर्ग विशेष को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने सम्बन्धी शक्तियां भारतगणतन्त्रा की विधायिका एवं कार्यपालिका में वैधानिक प्रक्रिया अन्तर्गत नीहित है। अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा किसी भी वर्ग या जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने हेतु, उस जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लक्षित एवं स्पष्ट प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भिजवाने होते हैं। राज्य सरकार के इस लक्षित स्पष्ट प्रस्ताव पर रजिस्ट्रार जनरल, भारत सरकार उस जाति-वर्ग को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने से सम्बन्धित संवैधानिक-वैधानिक प्रक्रिया के आधीन कार्यवाही शुरू करते हैं और प्रक्रिया के अन्तिम चरण में मंत्री मण्डल में निर्णय के साथ उस जाति वर्ग को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने हेतु प्रस्ताव/बिल संसद में पेश किया जाता है।
गुर्जर आरक्षण आन्दोलनकारियों की माँग
आन्दोलित गुर्जर समाज की मांग है कि-राजस्थान सरकार संविधान के अनुच्छेद 342 में वर्णित तरीके से प्रथम चरण में गुर्जर समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिये संवैधानिक-वैधानिक तरीके से "गुर्जर जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के स्पष्ट-लक्षित प्रस्ताव" केन्द्र सरकार को भिजवाये। यह राज्य सरकार का संवैधानिक-वैधानिक दायीत्व है जिसका पालन करना अनिवार्य है।
श्रीमती वसुन्धरा राजे का वादा !
पिछले वर्ष 2003 के विधान सभा चुनावों के दौरान श्रीमती वसुन्धरा राजे ने अपनी परिर्वतन यात्राा के दौरान गुर्जर बाहुल्य इलाकों में जाकर गुर्जरों से आरक्षण सम्बन्धी संवैधानिक-वैधानिक तरीके से राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्ताव भिजवाने और प्रधानमंत्री से मुलाकात कर त्वरित गति से कार्यवाही करवाने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब मुकर गई।
क्यों अपने वादे से मुकरे श्रीमती वसुन्धरा राजे और भाजपा ?
राजस्थान में मीणा जाति अनुसूचित जनजाति कोटे में सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाली जाति है। अन्य जातियों में गरीबी, अशिक्षा, कुरीतियों के कारण पिछड़ापन है और वे इस कोटे में रहते हुये भी फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। राज्य प्रशासनिक ढांचे में भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा व राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों का दबदबा है वहीं आर्थिक स्थिति मजबूत होने के कारण अनुसूचित जनजाति कोटे से मीणा उम्मीदवार आसानी से विधान सभा/लोकसभा चुनावों में जीत जाते हैं। नतीजन राज्य के राजनैतिक-प्रशासनिक तंत्र पर इनकी पकड़ मजबूत है और अनुसूचित जनजाति कोटे से इनके द्वारा उठाये जा रहे अधिकतम फायदे को वे छोड़ना नहीं चाहते हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी मीणा समुदाय को नाराज कर अपने वोट बैंक में 15 प्रतिशत का नुकसान और सम्भावित विधान सभा चुनावों में पराजय नहीं देखना चाहती है। क्योंकि वे जानते हैं कि अगर गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की उन्होंने पहल की तो उनका वोट बैंक खिसक कर कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के पाले में चला जायेगा। मीणा प्रशासनिक अधिकारी नाराज हो जायेंगे और भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार की चूलें हिला देंगे।
पिछले एक साल में राज्य सरकार ने क्या किया ?
भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार की वादा खिलाफी से नाराज होकर 29 मई, 2007 को गुर्जरों ने अपना आन्दोलन प्रारम्भ किया। पहिले ही दिन 26 गुर्जर शहीद हो गये। प्रशासनिक-राजनैतिक दबाव बना कर गुर्जरों में फूट डलवा कर, मीणा-गुर्जरों में जातीय संघर्ष करवा कर राज्य सरकार ने आन्दोलन को दबा दिया। गुर्जर नेताओं पर दबाव की राजनीति बनाते हुये उन को सरकार की मनमर्जी के अनुसार प्रस्ताव मानने के लिये मजबूर किया। गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में आरक्षण नहीं देने की एक सोची समझी रणनीति के तहत संवैधानिक-वैधानिक दायरे का उलंद्यन कर चौपड़ा कमेटी का गठन हुआ जोकि गैर कानूनी था। उसकी रिपोर्ट केन्द्र को भिजवाई, जोकि असंवैधानिक था और गुर्जरों को गुमराह करने के लिये गुर्जर आन्दोलन के दौरान राज्य प्रशासन-पुलिस प्रशासन और फौज द्वारा ढ़ाये गये जुल्मों को ढकने के लिये कुछ सहायता की घोषणा की गई, जो आज तक उन्हें नहीं मिली। इधर गुर्जर समुदाय में अपने पर हुये अत्याचारों और अपने नेताओं के कारण मिली असफलता से अन्दर ही अन्दर गहरी आग सुलगती रही। भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार अपनी ताकत के गुरूर में गुर्जरों के घावों पर मरहम लगाना भूल गई और सियासी दावपेचों में उलझ कर इस आग में घी डालने का काम करती रही। इस बार भी गुर्जरों की स्पष्ट चेतावनी के बावजूद राजस्थान सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा और बातचीत के रास्ते को छोड कर ताकत के दम पर गुर्जरों का दमन कर समस्या को सुलझाने का गैर जुम्मेदारान कार्य किया। आन्दोलन को कुचलने के लिये पहिले ही दिन 12 हजार से ज्यादा पुलिस और सुरक्षाबलों को झौंक दिया गया। दो दिनों में पुलिस फायरिंग में 43 लोगों की मौत हो गई। आज 22 हजार से ज्यादा पुलिस,अर्धसैनिक बल, और सेना के जवान इस समस्या से क्षेत्र में जूझ रहे हैं। समस्या जस की तस है और राजस्थान की भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार सियासी जोड़-तोड़ में जुटी है।
आखीर कड़वा सत्य सामने आ ही गया !
आखीरकार यह कड़वा सत्य सामने आ ही गया है कि भाजपानीत राजस्थान की श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार गुर्जर आरक्षण समस्या को किसी भी कीमत पर सुलझाना ही नहीं चाहतीं है। सरकार अब अपनी पूरी ताकत झौंक कर गुर्जर आरक्षण आन्दोलन को कुचलने में जुट गई है। भारतीय जनता पार्टी और भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार ने इस कड़ी में अब मीडिया मैनेजमैंट और धुआधार प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक प्रचार का सहारा लेकर गुर्जर आरक्षण आन्दोलन को कुचलने के अपने गैर जुम्मेदारान कृत्य को अन्जाम देना शुरू कर दिया है। ई-टीवी और प्रिन्ट मीडिया के एक हिस्से में राज्य की विरोधी राजनैतिक पार्टियों पर आरोप लगाये जाते रहे हैं कि विरोधी राजनैतिक पार्टियां सियासत का खेल खेल रही हैं, जब कि उनकी गम्भीरत अनदेखी कर उनके पक्ष को जनता के सामने जानबूझ कर पेश नहीं किया जा कर उन्हें जबरन अपमानित किया जा रहा है।यही नहीं गुर्जर आरक्षण आन्दोलन में डाकुओं-गुण्डातत्वों के शामिल होने का रोना रोने वाली सरकार के मुखियाओं ने आन्दोलन के खिलाफ शिक्षा माफिया, भूमाफिया से भी मदद लेनी शुरू कर दी है। जिन शिक्षा माफियाओं के खिलाफ उनकी शिक्षण संस्थाओं में अनियमितता-घोटालों के चलते शिक्षक-कर्मचारी आन्दोलित रहे हैं और उनके खिलाफ विभागीय जांचें विचाराधीन हैं वे श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार की खिलाफत छोड कर सरकार के गुर्जर विरोधी प्रचार में शामिल हो गये हैं। कल तक जिन को सरकार भूमाफिया प्रचारित कर उनके हवेली-बंगले तोड़ रही थी, वे भी सरकार की खिलाफत छोड़ कर सरकार के पक्ष में समर्थन और गुर्जर आन्दोलन की खिलाफत पर उतर आये हैं। इसे कहते हैं अपने फायदे की सियासत। भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार का भी फायदा और भूमाफिया-शिक्षा माफिया का भी फायदा। इस हाथ ले-उस हाथ दे !हम âदय से सम्मान करते हैं, आचार्य महाप्रज्ञ जी का ! लेकिन सम्माननीय आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी गुर्जरों को शान्ति का पाठ पढ़ाने का फैंसला आखीर कर ही लिया। गुर्जरों पर राज्य सरकार के अत्याचार, पुलिस की बर्बरता उन्हें नजर नहीं आई। एक शब्द भी सरकारी अत्याचार के खिलाफ बोलने का साहस नहीं जुटा पाये। आखीर भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार ने उन्हें "स्टेट गैस्ट" का दर्जा जो दे रख है। "स्टेट गैस्ट" राज्य के पक्ष में नहीं बोलेगें तो किसके पक्ष में बोलेगें ? फारवर्ड ब्लाक का साफ सोच है कि संविधान की धारा 342 के तहत गुर्जर आरक्षण की चिटठी उपरोक्त वर्णित तरीके से निश्चित रूप से भिजवाई जानी चाहिये।अब आम अवाम को फैंसला करना है कि इस समस्या के लिये कौन जुम्मेदार है ? भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और मीडिया अथवा गुर्जर समुदाय व अन्य राजनैतिक पार्टियां जिन के विचारों को दर किनार कर, उन पर आरोप लगा कर अनुचित तरीके से उन्हें अपमानित किया जा रहा है।
संघर्षशील समाज को फारवर्ड ब्लाक का क्रान्तिकारी अभिवादन !
04/2008
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