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4658, BURAD HOUSE,
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वीर बालिका स्कूल के अस्तित्व को बचाओ !
आप सब से हार्दिक मार्मिक अपील
आप सब से हार्दिक मार्मिक अपील
जयपुर के ओसवाल समाज के संस्थापकों में से एक तत्कालीन प्रतिष्ठित परिवार ने यतिवर शिरोमणी श्री लीलाधर जी की प्रेरणा और उनके कर्मशील मार्गदर्शन में ओसवाल समाज को दो विशिष्ट उपहार दिये। एक यतिवर शिरोमणी श्री लीलाधर जी के नाम से उनके घी वालों के रास्ते में स्थित उपाश्रय में लीलाधर जी की पाठशाला की स्थापना ! जिसे बाद में श्री जैन श्वेताम्बर पाठशाला और वर्तमान में श्री जैन श्वेताम्बर सीनियर सेकेण्डरी स्कूल के नाम से जाना जाता है। दूसरी शिक्षण संस्था मूलत: समाज की साध्वियों और महिलाओं के शिक्षणार्थ श्राविकाश्रम कन्या पाठशाला का नाम से स्थापित की गई जिसे पश्चात~वर्ती समय में श्री वीर बालिका विद्यालय के नाम दिया गया और वर्तमान में श्री वीर बालिका सीनियर सेकेण्डरी स्कूल के नाम से पहिचाना जाता है।इस बालिका स्कूल के संस्थापकों का श्री वीर बालिका विद्यालय की स्थापना के पीछे मूल उददेश्य समाज की बालिकाओं के सर्वागींण विकास का रहा। इसके साथ -साथ अन्य समाजों की बालिकाओं को भी विद्यालय में प्रवेश मिले ताकि उनके जीवन के सर्वागींण विकास में भी विद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान रहे, यह बडा सोच भी साथ ही रहा। श्राविकाश्रम कन्या पाठशाला से श्री वीर बालिका सीनियर सैकेण्डरी स्कूल होने तक स्कूल ने अपने जीवन पथ पर समगz ओसवाल समाज के सामूहिक प्रयासों और मार्गदर्शन में बालिका शिक्षा के लिये स्कूल के संस्थापकों के उच्च आदर्शो का निर्वहन किया। वर्ष 1956 में सरकारी अनुदान प्राप्त करने हेतु स्कूल के लिये अलग से प्रबन्ध समिति के गठन की बाध्यता के कारण श्री वीर बालिका संचालन मण्डल की स्थापना और पंजीकरण करवाया गया। पंजीकरण का मूल उददेश्य मात्रा सरकारी अनुदान हेतु शासकीय औपचारिकता पूरी करना था ! लेकिन जिन सज्जनों ने लड़कियों की इस स्कूल का प्रबन्धन सम्भाला, उन्होंने सोची समझी योजना के तहत धीरे-धीरे इस स्कूल को समाज के नियन्त्राण से हटा कर अपनी जागीर का रूप देना शुरू कर दिया। इस ही क्रम में जनवरी, 1981 में श्री वीर बालिका संचालन मण्डल के विधान में संशोधन कर लिया गया और स्कूल का नियन्त्राण कुछ लोगों के हाथ में सिमट गया। इस विधान संशोधन के बाद स्कूल पर से समाज का नियंत्राण पूरी तरह खत्म हो गया।वर्ष 1981 तक जो संस्था जयपुर की नामी गिरामी संस्था के रूप में प्रसिद्ध रही तत्पश्चात~ इसकी गर्दिश के दिन प्रारम्भ हो गये। स्कूल के भविष्य, स्कूल की गतिविधियों, के फैंसले सेठों की गदि~दयों पर होने लगे। शिक्षण गुणवत्ता, विद्यालय की सांस्कृतिक व प्रशैक्षणिक गतिविधियां धीरे-धीरे स्तरहीन श्रेणी की ओर जाने लगी। संस्था में बालिकाओं के शिक्षण, उनके चरित्रा निर्माण, शिक्षण कार्य की गुणवत्ता को दरकिनार कर चाटुकारिता-सेठों के जी हुजूरियों को प्रोत्साहित किया जाने लगा। नतीजन वर्ष 2000 आते-आते संस्था का गौरवशील इतिहास गर्दिश के अंधेरे में खो गया।अगर पिछले पांच सालों को ही लें तो संस्था का शैक्षिक स्तर पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया है। स्कूल के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की दसवीं और बारहवीं कक्षा तथा आठवीं के जिला बोर्ड के परीक्षाफलों पर नजर डालें तो शर्मसार होने के अलावा बचाही क्या है ? गत वर्ष माध्यमिक कक्षा में आधी से ज्यादा बच्चियां या तो फेल हो गई या पूरक परीक्षा के लिये मजबूर हो गई। इस साल तो कक्षा आठ की 30 से ज्यादा लड़कियां पूरक परीक्षा देने के लिये मजबूर है। आठवीं, दसवीं और बारहवीं कक्षाओं के समगz परीक्षा परिणामों का गहराई से विश्लेषण करें तो अहसास हो जायेगा कि स्वंयभूं सेठों, उनके चाटुकारों और वेतनभोगी जी हुजूरियों के कारण स्कूल का पूरा आन्तरिक प्रशासन चरमरा गया है। शैक्षणिक विशिष्ठियां समाप्त हो गई है। संस्था के प्रधान शैक्षिक अधिकारी को अपने शैक्षिक दायीत्वों की जानकारी तक नहीं है।पांच सालों से स्कूल में शिक्षण की गुणवत्ता समाप्त हो जाने से स्कूल की प्रतिभावान छात्रााऐं अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिये दूसरे स्कूलों में जा रही है। आखीर ये पलायन क्यों ? कभी सोचा स्कूल पर कब्जा किये बैठे धन्नासेठों और उनके चाटुकारों ने ? संस्था के कर्ताधर्ताओं और उनकी चाटुकार और नौकरपेशा जी हुजूरियों की मण्डली संस्था में आर्थिक संकट का रोना रोकर जानबूझ कर संस्था में विज्ञान संकाय भी नहीं खोल रहे हैं और बालिकाओं को स्कूल छोड कर जाने के लिये मजबूर कर रहे हैं। हर स्तर पर अभिभावकों में आक्रोश है, लेकिन स्वंयभूं सेठियों और उनके चाटुकार मण्डली को कोई परवाह नहीं है। कभी खेलकूद और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में अग्रणी रही स्कूल में सभी तरह की सहशैक्षिक प्रवृत्तियां लगभग ठप्प पड़ी हैं। हालात इतने बदतर हैं कि टेबिल टैनिस की खिलाड़ी लड़कियां, जो अपने बूते पर जिला/राज्य स्तर पर अपनी और अपने स्कूल की पहिचान बनाने में जुटीं है, उनकी टेबिल टैनिस की टेबिल को तोड़ दिया गया है और पिछले लम्बे अर्से से उसे मात्रा इस लिये ठीक नहीं करवाया गया कि स्कूल पर कुण्डली मारे बैठे सेठियों के गरीब दिलों में आर्थिक तंगी है। शर्मिन्दगी शब्द का अर्थ भी शायद ये नहीं जानते हैं। स्कूल की पहिचान बनाने वाली इन बच्चियों को प्रोत्साहित भी नहीं किया जाता है। स्कूल का बोरिंग समय पर ठीक कराने के लिये धन नहीं है ! स्कूल का परीक्षा परिणाम सुधारने के लिये उच्च शैक्षिक योग्यता व अनुभव वाले शिक्षक रखने के लिये धन नहीं है ! विद्यालय में विज्ञान संकाय खुलवाने के लिये पैसा नहीं है। तो फिर ये एक ही कुनबे के धन्नासेठ क्यों कुण्डली मार कर बैठे है ? आप सब से पूरे जैन समाज से हमारी मार्मिक अपील है कि हमारे-आपके पूर्वजों की इस धरोहर को बचाने के लिये जुम्मेदारी युक्त ठोस कदम उठायेगें और विद्यालय को अपने नियन्त्रण में लें या फिर इसे सरकार को सुपुर्द कर दें। फैंसला आप को करना है कि समाज अपनी जुम्मेदारी वहन कर स्कूल को गर्त के दलदल से निकालेगा या जनसंद्यर्ष के रास्ते इस स्कूल की स्थिति सुधरेगी।
संघर्षशील समाज को फारवर्ड ब्लाक का क्रान्तिकारी अभिवादन !
05/2008