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स्थापना दिवस पर विशेष

क्रान्तिकारी भारत का सपना


22 जून! देश में भूख, भय, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, जातिवाद के खिलाफ क्रान्तिकारी जनसंघर्ष का बिगुल बजाने का दिन! 22 जून, 1940 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने देश में राष्ट्रीय चरित्र से ओतप्रोत क्रान्तिकारी पार्टी ऑल इण्डिया फारवर्ड ब्लाक का गठन किया था। नेताजी का सपना था कि वैज्ञानिक समाजवाद के जरिये भारत में राष्ट्रीय चरित्र से ओतप्रोत वर्ग विहीन, शोषण विहीन क्रान्तिकारी समाजवादी गणतान्त्रिक व्यवस्था कायम हो और भारतीय परिस्थितियों, वातावरण, देशी संसाधनों व प्रतिभाओं का वैज्ञानिक तरीके से उपयोग कर क्रान्तिकारी भारत का नवनिर्माण किया जाये। आज सत्तर साल बीत जाने के बावजूद इस देश के सत्ताधीश नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सपनों का भारत बनाने के बारे में सोच भी नहीं पाये हैं।हालात ये हैं कि अंगे्रजों की गुलामी से मुक्ति पाये भारत पर अब काले मालिकों का कब्जा है। भारत को गणतंत्र कहने वाले सत्ताधीशों की अगुआई में तंत्र देश के गण को ही कुचलने में जुटा है। देश में भूख, भय, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, जातिवाद का बोलबाला है। देश की अखण्डता, एकता, देशवासियों के आपसी विश्वास को मजबूत करने की किसी को कोई फिक्र या चिंता नहीं है।आज देश में कोई राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति नहीं है। देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिये कोई समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति नहीं है। देश के विकास के लिये कोई समग्र राष्ट्रीय योजना हम पिछले साठ सालों में नहीं बना पाये। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये भी समग्र समन्वयित कोई योजना आज तक हमारे पास नहीं है। देश के विकास के लिये कोई वैज्ञानिक सोच और रास्ता हम आज तक तैय नहीं कर पाये। जम्मू-काश्मीर, नागालैण्ड, मणीपुर जैसे संवेदनशील राज्यों में अलगाववाद से पांव पसार रखे हैं, लेकिन पिछले साठ सालों में हम इस समस्या को नहीं सुलझा पाये हैं, आखीर क्यों?देश के नागरिकों को गरीबी, भुखमरी, अन्याय, अत्याचारों से मुक्ति दिलाने में नाकारा-निकम्मे साबित हुये शासन-प्रशासन की नालायकी तथा सम्पन्न असरदार पूंजीपतियों, इजारेदारों, सामंती तत्वों से मुकाबला कर रहे गरीब शोषित पीडि़त वर्ग, आदिवासियों को नक्सलवादी घोषित कर उनका दमन तो किया जा रहा है, लेकिन उनकी मानवीय करूणाजन्य पीडाओं के निराकरण की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।देश में राजनैतिक पार्टियों की करतूतों, अपने आपको जननेता कहने वालों के भ्रष्ट आचरण, चुनिंदा जनप्रतिनिधियों के असंयमित आचरण ने तथा कुछ संगठनों एवं राजनैतिक दलों और उनके नेताओं द्वारा पनपाये गये नस्लवाद और नस्लवादियों तथा सत्ता, शासन-प्रशासन के गठजोड़ के अत्याचारों से पीडि़त अवाम का एक हिस्सा अत्याचारियों के खिलाफ लामबंद हो गया है। सरकारी तौर पर इस तकबे को नाम दिया गया माओवादी! सरकार और सत्ता सुख भोग रहे राजनेताओं ने एक क्षण के लिये भी नक्सलवाद और माओवाद से जुड़े और लगातार जुड़ रहे पीडि़त शोषित वर्ग, आदिवासियों की समस्याओं को समझ ने की कोशिश नहीं की और न ही ये तकबा इनकी समस्याओं को सुलझाने की इच्छा शक्ति रखता है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और भाजपा अनपढ़, समाज से कटे आदिवासियों पर अपनी सोकाल्ड हिन्दू सांस्कृतिक परम्पराओं को थोपना चाहते हैं, वहीं सत्तारूढ़ नेता फौजी ताकत के जरिये उनको कुचलना चाहते हैं। नतीजन सशस्त्र संघर्ष की स्थिति चल रही है। एक पक्ष इसे क्रान्तिकारी संघर्ष बता रहा है तो सरकार इसे तोडफ़ोड़ की हरकतें बताती है और अब हालात बूते के बाहर जाते नजर आ रहे हैं। यह हाल है हमारे देश और देश के सत्ताधीशों के!आइये लगे हाथ राजस्थान का जायजा भी ले लें। राजस्थान में दो रूपये किलो अनाज देने के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं। लेकिन यह हकीकत साफ हो गई है कि राज्य में पीडीएस की दुकानों के जरिये मिलने वाला राशन प्रदेश की आधी आबादी तक तो पहुंच ही नहीं रहा है। जो थोड़ा बहुत पीडीएस की दुकानों पर पहुंच भी रहा है, तो वह राशन इन दुकानों से कालाबाजारियों के जरिये खुले बाजार में बिकने के लिये पहुंच रह है बिना रोक-टोक के। कालाबाजारियों-जमाखोरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करने की तो शायद सत्ताधीशों ने सौगंध ही खा रखी है। शुद्ध के लिये युद्ध की नौटंकी चालू है। लेकिन एक भी आरोपी को बाराताड़ी आज तक नहीं दिखाई गई। चारों तरफ छापेमारी चल रही है। रसद विभाग, चिकित्सा विभाग, आबकारी विभाग, जेडीए, नगर निगम सहित कई सरकारी विभाग ताबड़तोड़ छापेमारी में जुटे हैं। सरकारी अफसर और कारिंदे अपने थोबडे अखबारों में छपवा रहे हैं। जरा इनसे पूछा जाये कि जितने छापे मारे उनके अनुपात में अदालतों में कितने चालाने पेश किये और कितने जमाखोरों, कालाबाजारियों, मिलावटियों, टैक्स चोरों को सजा दिलवाई? तो आंकड़े मिलेंगे जीरो! यही हाल है, चोरी, डकैती, अपहरण, बलात्कार, नकली दवाइयां बेचने, वाहन चोरी, चैन लुटेरों की कारस्तानियों, हथियार लाइसेंसों, नशीले पदार्थों-शराब तस्करी आदि जैसे मामलों में। खूब छपते हैं ये मामले अखबारों में। कार्यवाही क्या होती है, यह खुद जुम्मेदार अफसर भी बताने की स्थिति में नहीं है। हुकाम्मों और अहलकारों में एक सोच पनप गया है कि आखीर कार्यवाही करने से उन्हें क्या मिलेगा? राजनेताओं, आलाअफसरों, सत्ताधीशों की नाराजगी, कम महत्व की जगह पर तबादले वगैहरा! इससे तो अच्छा है, ले देकर मामले रफादफा करने में ही फायदा है। ईमानदारी से काम करो, अवाम को न्याय दिलाओं, तो तैयार है, तबादला, जांच, अफसरों की लताड़, सत्ताधीशों की फटकार! इससे तो नेताओं, सत्ताधीशों और उनके छुटभैय्यों से दोस्ती ही भली! जहां बैठे हैं वहां छुटभैय्या नेताओं के जरिये दो पैसों की कमाई तो होगी ही, साथ ही नेताओं से दुआ सलाम भी रहेगी। काम आयेंगे आडे वक्त!वक्त है शासन-प्रशासन को चुस्त-दुरूस्त कर ईमानदारी से आम अवाम के दु:ख तकलीफों को दूर करने, कामचोरों, भ्रष्टाचारियों की लगाम कसने की! आम अवाम के बीच से भूख और भय खत्म करने की। साम्प्रदायिकता और जातिवाद को नेस्तनाबूद करने की। तभी कायम हो सकेगी आम अवाम में एकता, भाईचारा, विश्वास और तभी अवाम में देश के लिये बलिदान/कुर्बानी देने की ललक पैदा होगी। सबक लें नेताजी सुभाष के क्रान्तिकारी विचारों से और चलें उनके बताये हुए देश भक्तिपूर्ण क्रान्तिकारी संघर्ष पथ पर!


हीराचंद जैन
जनरल सेक्रेटरी

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